
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के कुछ विवादित प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाई, लेकिन पूरे क़ानून पर रोक से इनकार कर दिया। इस पर बीजेपी नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी की प्रतिक्रिया भी सामने आई, जो साफ़, सधी और तीखी थी।
“जो लूट की लीगल छूट चाहते हैं, वही सुधार का विरोध कर रहे हैं।” – मुख़्तार अब्बास नक़वी
“सुधार पर सांप्रदायिक हमला नहीं चलेगा”
नक़वी ने अपने बयान में यह साफ़ किया कि वक़्फ़ में सुधार कोई सांप्रदायिक या धार्मिक मसला नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और व्यवस्था सुधार से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा:
“सुधारों पर कोई भी सांप्रदायिक प्रहार स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सरकार देखेगी, लेकिन सुधार को कोई सांप्रदायिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।”
‘पांच साल तक इस्लाम मानने की शर्त’ पर सुप्रीम कोर्ट की रोक सही: नक़वी
सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान पर भी अंतरिम रोक लगाई जिसमें किसी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करने से पहले पांच साल तक इस्लाम को मानने की शर्त रखी गई थी।
इस पर नक़वी ने कहा:
“सुप्रीम कोर्ट को किसी भी कानून की समीक्षा का संवैधानिक अधिकार है। सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन करेगी।”
“लूट की लॉबी बनाम सुधार की ज़रूरत”
विरोधियों पर निशाना साधते हुए नक़वी बोले:
“जो लोग हाहाकार मचा रहे हैं, वो लूट की लॉबी के सदस्य हैं। उन्हें लूट की लीगल छूट चाहिए, इसलिए भ्रम फैलाकर आम जनता को गुमराह किया जा रहा है।”
उनका कहना है कि यह अधिनियम आस्था के संरक्षण और प्रशासन के सुधार का प्रयास है, न कि किसी समुदाय को निशाना बनाने की साज़िश।
राजनीति या ज़रूरी बहस?
नक़वी के बयान से साफ़ है कि बीजेपी इस मुद्दे को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता के नजरिए से देख रही है।
यह बयान ऐसे समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद दोनों पक्ष – समर्थक और विरोधी – अपने-अपने तर्कों के साथ सामने आ रहे हैं।
वक़्फ़ क़ानून को लेकर देश भर में चर्चा है, और अब जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, तब मुख़्तार अब्बास नक़वी का बयान यह संकेत देता है कि राजनीतिक बहस अभी खत्म नहीं हुई है।
अब देखना ये होगा कि सरकार आगे क्या कदम उठाती है और अदालत में ये मामला किस दिशा में बढ़ता है।